Friday, December 23, 2011

धूमिल शब्दों में ढून्ढ रहा हूँ खुद को..




कुछ परछाईयाँ हैं यादों की जो विचलित करती हैं मुझे ...
ढूँढता हूँ अपना अक्स उनमें ..
इस सोच में डूबा हुआ हूँ की किस तरह अपना वजूद उन शब्दों में ढून्ढ सकूं..
माजी से कुछ आवाजें आती हैं ..
कुछ खामोश यादें कहीं किसी डायेरी के हवाले कर दी थी उस रात ..

वो रात बहुत लम्बी थी .. सच..
मुझे आज भी याद है..
उस रात दिए  की लौ में लिखे हुए कुछ नज़्म..
शायद उन्ही में ढून्ढ रहा हूँ खुद को..
आज  ढून्ढ  रहा  हूँ  शायद  उन्  यादों  को..
कुछ  अजीब  रिश्ता   है  उन्  यादों  से  जो  आज  तक  व्यक्त  नहीं  कर  सका शब्दों में मैं..

शायद  मेरा  वजूद.. मेरा  अक्स  छुपा  है  उन्ही  पुराने  पन्नो  में  कहीं..
उस  मुरझाये हुए कागज़ में जिसमें मेरे कई जज्बातों ने दम तोड़ दिया..
वो जाम का प्याला जिसने मेरे दर्द को हर लिया था..
अश्क की वो बूँदें जिसने उस कागज़ को  भींगो दिया था..

यूँ तो एक अरसा बीत गया उस रात को ..
पर याद भी नहीं क्या खोया क्या पाया उसके बाद जीवन में ...
शायद अपना कुछ अहम् खो दिया था उस रात मैंने ..
एक ऐसा हिस्सा जिससे मैं फिर न पा सका कभी..
कुछ धुंदली यादें समेटे हुए..
आज उन्ही धूमिल शब्दों में ढून्ढ रहा हूँ खुद को..


Glossary
माजी :- past


Monday, December 5, 2011

आज खामोशी भरी हुई है मेरी नज़्म में...



कई दिनों बाद नज़्म लिखने का ख़याल आया 
न जाने क्यूँ आज कलम कुछ रूठी हुई है मुझसे ..
न जाने क्यूँ आज स्याह की शीशी बंद पड़ी है 
की जैसे मानो ख्यालों को शब्द नहीं मिल रहें हो ...
कागज़ कोरा पडा है ... ऐसे की जैसे खामोशी समाई हुई है उसमे ...

हाँ मैं खुश हूँ .. मैं लिखना चाहता हूँ उसे 
पर न जाने क्यूँ इस ख़ुशी में भी एक ख़ामोशी समाई हुई है 
ख्यालों को शब्द देने में असमर्थ , 
खोजता हूँ और सोचता हूँ की 
क्यूँ है ये खामोशी .. इसके मायिने क्या हैं ...

शायद ख़ुशी से मेरा नाता गहरा नहीं ... 
शायद जीवन के इस पहलू को कम देखने की आदत है मेरी ..
इसलिए जोड़ नहीं पा रहा हूँ इस एहसास से खुद को ...
आँखों में नमी है पर व्यक्त नहीं कर सकता अपनी भावनाओ को 


एक तुम ही हो जो इस ख़ामोशी को भेद ..जान सकती हो की मैं सोचता हूँ ..
झांक सकती मेरे मन के बंद किवारों से और देखती हो क्या छुपा है उनमें ..
सच , कई बातें ... कई एहसास सिर्फ तुमसे ही बाँट सकता हूँ मैं ..
शायद तुम्हे पास पाकर भावुक हूँ मैं ...
शायद इसलिए ख़याल अल्फाज नहीं अख्तियार कर पा रहे हैं ...
शायद आज की नज़्म सिर्फ तुम ही पढ़ सकोगी ... 
शायद आज की नज़्म को शब्द नहीं दे पाऊंगा मैं ...


आज स्याह की शीशी बंद ही रहेगी ..
आज कागज़ को कोरा ही रहने दो ..
कुछ भावनाओ ... 
कुछ एहसासों को शब्दों में बाँधनें की चेष्ठा नहीं करूंगा मैं ...
उन्हें बस महसूस करना चाहता हूँ अभी ... 
आज खामोशी भरी हुई है मेरी नज़्म में ...
खामोश ही रहने दो उसे ...