Monday, December 5, 2011

आज खामोशी भरी हुई है मेरी नज़्म में...



कई दिनों बाद नज़्म लिखने का ख़याल आया 
न जाने क्यूँ आज कलम कुछ रूठी हुई है मुझसे ..
न जाने क्यूँ आज स्याह की शीशी बंद पड़ी है 
की जैसे मानो ख्यालों को शब्द नहीं मिल रहें हो ...
कागज़ कोरा पडा है ... ऐसे की जैसे खामोशी समाई हुई है उसमे ...

हाँ मैं खुश हूँ .. मैं लिखना चाहता हूँ उसे 
पर न जाने क्यूँ इस ख़ुशी में भी एक ख़ामोशी समाई हुई है 
ख्यालों को शब्द देने में असमर्थ , 
खोजता हूँ और सोचता हूँ की 
क्यूँ है ये खामोशी .. इसके मायिने क्या हैं ...

शायद ख़ुशी से मेरा नाता गहरा नहीं ... 
शायद जीवन के इस पहलू को कम देखने की आदत है मेरी ..
इसलिए जोड़ नहीं पा रहा हूँ इस एहसास से खुद को ...
आँखों में नमी है पर व्यक्त नहीं कर सकता अपनी भावनाओ को 


एक तुम ही हो जो इस ख़ामोशी को भेद ..जान सकती हो की मैं सोचता हूँ ..
झांक सकती मेरे मन के बंद किवारों से और देखती हो क्या छुपा है उनमें ..
सच , कई बातें ... कई एहसास सिर्फ तुमसे ही बाँट सकता हूँ मैं ..
शायद तुम्हे पास पाकर भावुक हूँ मैं ...
शायद इसलिए ख़याल अल्फाज नहीं अख्तियार कर पा रहे हैं ...
शायद आज की नज़्म सिर्फ तुम ही पढ़ सकोगी ... 
शायद आज की नज़्म को शब्द नहीं दे पाऊंगा मैं ...


आज स्याह की शीशी बंद ही रहेगी ..
आज कागज़ को कोरा ही रहने दो ..
कुछ भावनाओ ... 
कुछ एहसासों को शब्दों में बाँधनें की चेष्ठा नहीं करूंगा मैं ...
उन्हें बस महसूस करना चाहता हूँ अभी ... 
आज खामोशी भरी हुई है मेरी नज़्म में ...
खामोश ही रहने दो उसे ...

2 comments:

  1. Nice post. I really like it. Thank you for sharing.

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  2. jivan ki har khamosi hamesa hi kuch kahti h par bahut kam log us khmosi ko sun pate h. hum hamesa sochte h koye hamari bejan,badrang jindgi ko khubsurat bana dega.par kaun janta h ye umide puri hogi v ya nahi.

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