Monday, July 23, 2012

कमरे की वो काठ की अलमारी



मैंने कमरे के कोने में पड़े ,
उस काठ की अलमारी से कुछ सामानों को निकाला
उसे रद्दी में बेचने से पहले ...
कई तसवीरें .. कई  धुंधली यादें सिमट के मेरे सामने आ गयीं ..
मेरा चुन चुन करने वाला जूता , मेरा football .. मेरी टोपी ..
सब कुछ मसरूफ था उसमें ..
ऐसे की जैसे मेरा एक अंश छुपा सा था इतने सालों से उसमें ...

एक तस्वीर मिली जिसमें पापा - मम्मी मुझे पकड़े हुए खड़े थे ..
स्कूल का वो पहला certificate मिला जो मुझे कविता पढने के लिए मिला था
वो स्वेअटर जिसे मम्मी ने अपने हाथों से बुना था ..
उसपे हाथ फेरता हूँ तो प्यार की खुशबू से मन महक उठा
जैसा पहली बार उसे छूकर हुआ था ..

मम्मी की एक मैली शौल मिली जो फटी हुई थी ...
पापा का Jacket भी मिला ...
जिसे पेहेन के वो मुझे रोज़ स्कूल छोड़ने जाया करते थे ..
मेरे साईकिल की चाबी मिली जिसको बारिश में चलाते हुए
कई बार कीचड़ से मेरे कपडे सन जाते थे ..
माँ तुम तब भी बिना कुछ डांटे मुझे साफ़ कर देती थी ..

अब भी याद है की किस तरह
बिजली के जाने पे छत पे सोया करते थे खाट पे ..
आज बिजली जाने को भी तरसता हूँ ..
इस inverter ने उन लम्हों को छीन लिया मुझसे ..
मेरे घर के पलंग में वो सुख नहीं
जो उस खाट में आता था मुझे

आज न तो  वो बारिश है .. न वो बेफिक्र शामें ..
मैं अपने घर से दूर किसी अनजान शेहेर में रहता हूँ
हर रोज अपनी खुशियों का सौदा कुछ सिक्कों से करता हूँ ..
उस वक़्त मेरे पास न तो मोबाइल था ...
और न ही laptop था ...
मेरे पास तो सिर्फ अपने घर का सुख था ..
आज , उस बारिश को तरसता हूँ ..
आज कार चलाने के बावजूद साईकिल वालों से इर्ष्या करता हूँ
यहाँ की ऊँची दीवारों के बीच अपना वो मैदान खोजता हूँ
जहां बचपन में भाई के साथ क्रिकेट खेला करता था मैं ..
वो आसमान ढूँढता हूँ जहां मैं अपनी पतंग उड़ा सकूं ..
आज भी उस बारिश में भींगना चाहता हूँ ..
इस शेहेर की बारिश में वो बात नहीं ..
कितनी नमी होगी उस बारिश में की उसको याद करके ही
मेरी आँखें भर आई अभी ...

उस अलमारी को बेचा नहीं मैंने ..
कहीं न कहीं उसमें मेरा एक ऐसा अंश था जिसे मैं भूल चुका था ..
कमरे की वो काठ की अलमारी अब भी वहीँ हैं ..
मैंने कई दिन उसे खोल कर अपने बचपन में डूब जाता हूँ ...

Saturday, June 23, 2012

आखिर किस समाज की बातें करते हैं हम ... ?



आखिर किस समाज की बातें करते हैं हम ...?
वो कायर व्यवस्था जहां किसी औरत पर हाथ उठा के हम खुद को वीर गाथा गाते हैं ...
वो समाज जो आज भी रूढ़ीवाद की दलदल में धसा
अपने मैले पैरों को तरफ देखता नहीं क्यूंकि वो उसे गंदे दिखाई देते हैं ...

वो समाज जिसकी चेतना उतनी ही शिथिल है , इतनी ही निर्जीव है
जितना  मेरे गली में लगा हुआ खम्बा ..
वो हिलता नहीं .. पवन के हिलोरे उसे छु कर भी
जगा नहीं पाते .. नींद से .. वो वहीँ है बरसों से स्थिर ..

वो समाज जिसमे एक नव विवाहित जोड़ा यूँ ही गम हो जाते हैं
क्यूंकि समाज के बूढों ने उनका बहिष्कार कर दिया है
जहां कोख में मार दिया गया मेरे मोहल्ले की एक औरत की बच्ची को
आखिर किस समाज की बातें करते हैं हम

वो समाज जो आज भी बच्चों के छोटे हाथों में
किताबों की जगह मैले बर्तन , भीख के कटोरे और बन्दूक थमा देता है
उन्हें अपाहिज बना देता है .. उन्हें बेच देता है व्यश्या घरों के हवाले
और जब यही बच्चे बड़े हो कर उससे इन सवालों का प्रश्न पूछते हैं
तो  उन्हें अपने से काट कर फेक देता है
ऐसा की जैसे कोई हिस्सा हो शरीर का जो अब नश्वर हो चला है

आखिर किस समाज की बातें करते है हम ,
किस समाज की बातें करते हैं हम
जो स्त्रीयों को पहले वेश्या बनने पे मजबूर करता है और
उसके बाद उन्ही से रिश्ते तोड़ लेता है
उनके घर रात के अँधेरे में जाने वाले
दिन के उजालों में उसे ही जला कर मार देते हैं समाज के कालिक बता कर ...

आखिर किस समाज की बातें करते हैं हम ,
जहां का युंवक अनभिज्ञ है देश की समस्याओं से
उनसे लड़ना तो  दूर .. वो जानना भी नहीं चाहता उनके पनपने के कारण को
वो व्यस्त है अपने नए Smart phone पर games खेलने में
मगन है अपने iPod पे गाने सुनने में
उसे क्या फर्क पड़ेगा

आखिर किस समाज की बातें करते हैं हम ,
जिसने जात-पात पर लोगों को सर पे बिठाया
और कईयों को पैरों तले कुचला ...

जहां किसी कमजोर औरत का बलात्कार कर दिया गया
अपनी वैशियत दिखाने के लिए ..

इतने मज़हब जिस देश में जन्में
आज , वही देश क्यूँ मज़हब की लड़ाईयां लड़ रहा है ?
गुजरात , उड़ीसा और अयोध्या के दिन देख रहा है
जहां कभी गाँधी , चैतन्य और राम ने जन्म लिया था

आखिर किस समाज की बातें करते हैं हम ,
आखिर किस आधुनिकता की बातें करते हैं हम
क्यूँ बखान करते हैं अपने उन्नति का ..
की जब बुनियादी प्रश्नों के हल आज भी ढून्ढ नहीं पाए हैं हम ..

आखिर किस समाज की बातें करते हैं हम ,
जो गाड़ियों , कारखानों के शोर में उस बूढी औरत की
आवाज़ नहीं सुनता जिसे सड़क पार करना नहीं आता ..
उसे वृद्ध आश्रमों  के हवाले कर देता है .. 


सच तो  ये है की हम
आज भी जकडे हैं इन व्यर्थ के बंधनों में
समाज एक मृगमरीचिका है ,
एक ऐसे स्वार्थी setup की मिथ्या है
जिसके के पास कोई नैतिकता नहीं ..
जिसने अपनी चेतना खो दी है
उसकी आत्मा मर चुकी है
वो न तो मेरा है न तेरा ,
उसकी आवाज़ मर चुकी है ..
या सच कहें तो वो गूंगा हो चुका है ..
उसके आँखों पर अंधविश्वास की काली पट्टी पड़ी है
और उसके हाथ - पांव जकड़े हैं
उसके निजी मोह में ...
वो विद्रोह नहीं कर सकता क्यूंकि
वो कायर है ..
अपनी कायरता छुपाने के लिए
रिवाजों और बंधनों में रहने को मजबूर करता है हमें
ताकि हम प्रश्न न पूछें उसके हुकुमरानों से ..

समाज मैं भी हूँ , समाज तुम भी हो ,
वो  सिर्फ भ्रष्ट नेताओं की देन नहीं  ,
उसके  बाशिंदे  मामूली  इंसान भी  हैं
हाँ , ये सच हैं  की वो  निहत्ते  हैं  या  शायद
अपने हथियारों  , अपने अधिकारों  को  लेकर  जागरूक  नहीं 

आओ ज़रा जागें इस नींद से ,
आओ ज़रा पानी फेंके ज़रा अपनी आँखों पर जोर से
ताकि फिर न सो सके इतनी लम्बी गहरी नींद
की कोई फिर न हम पर करके प्रहार भाग सके
की कोई फिर न कर सके दमन उन् मर्यादाओं का ...
की ताकि कोई भ्रष्ट नेता लूट न सके हमें ,
और खो जाए दुनिया की भीड़ में ..
ताकि कोई हमारे अधिकारों से यूँ ही खेल न सके
कटपुतलियों की तरह ..
खिलौने की तरह उसे तोड़-मरोर कर
फ़ेंक न दे उसे किसी gutter में ..
अगर  हम समाज हैं  
तो इसकी की मरम्मत का ज़िम्मा भी हमारे ही कन्धों  पे  है  ..
ज़ख्म खाने पड़ेंगे तो खायेंगे .. घावों पे मरहम न लगायेंगे
उन्हें ज़िंदा रखेंगे ताकि उसकी टीस हर पल महसूस कर सकें हम
समाज की नीव अगर कमजोर हो चली है तो उसे मज़बूत करना भी हमारा फ़र्ज़ है ..

'मैं तुझे फिर मिलूंगी' -अमृता प्रीतम (My Rendition )

अमृता प्रीतम (August 31, 1919 – October 31, 2005)  की पंजाबी  कविता ' मैं तेन्नु फिर मिलांगी ' सुन कर मन खामोश न बैठ सका ..  कोशिश की है कविता का हिंदी अनुवाद लिख सकूं ... कविता की रूह को कायम रखा है ... साथ ही साथ कुछ अपनी रचना भी डाली है इसमें ...  आशा है , आपको ये कविता पसंद आएगी ... |




मैं तुझे फिर मिलूंगी ....
किधर ..?  किस तरह ..?
ये मालूम नहीं ..
पर , मैं तुझे फिर मिलूंगी ....

शायद तेरे कल्पना की प्रेरणा बन कर
तेरे कैनवस पर उतरूंगी ..
कभी तेरे कैनवस पे एक रहस्यमयी लकीर बनकर खामोश तुझे देखूँगी ...
मैं तुझे फिर मिलूंगी ...

या सूरज की रौशनी बनकर तुझे रोशन करुँगी ...
या रंगों की बाहों में बैठ कर तेरे कैनवस पर बिछ जाऊंगी  ...

कभी तेरी हाथों का कलम बनकर मिलूंगी तुझसे...
कभी उपन्यास की नायिकाओं में मेरा अक्स दिखाई देगा तुझे..
मैं तुझे फिर मिलूंगी ...

या किसी झरने का पानी बन जाऊंगी ..
और एक  शीतल एहसास से तेरे बदन से लिपट जाउंगी ...
तुझे अपने आगोश में समेट लूंगी ...

रात में कभी चाँद की शीतलता दूँगी तुझे ...
कभी जाम का प्याला बन कर तेरे होटों से लग जाउंगी ...
किसी पेड़ की छाया बनूँगी .. तो कभी किसी फूल की खुशबू ..
तेरे बिस्तर की  सिलवटों में नज़र आऊंगी कभी ..

अपने गुफ्तगू में मेरा ज़िक्र तुम अक्सर करोगे ..
मैं तेरे ख्यालों में अक्सर आती रहूंगी  ..

मैं ज्यादा तो नहीं जानती , 
पर इतना जानती हूँ की वक़्त जो भी करेगा हम साथ चलेंगे ...
कहते हैं की इस जिस्म के ख़त्म होने से सारे रिश्ते- नाते ख़त्म हो जाते हैं ...
पर मेरा -तुम्हारा रिश्ता जिस्म के बंधनों से दूर ..
रूह तक जाता है ..
कहते हैं की यादों के धागे काएनात की लम्हों की तरह होते हैं ,
मैं उन् लम्हों को चुनुगी ... उन्हें समेट लूंगी ...
मैं उस धागे को फिर बुनुंगी ..
मैं .. तुझे फिर मिलूंगी ....

यादें - Farewell Poem ...

मैं अक्सर काफी गंभीर कवितायें लिखता हूँ .... अपने Farewell के अवसर पे कुछ हल्का लिखने की सूझी तो ये कविता ह्रदय से निकली .. ये कविता मेरे चार सालों के अनुभव का समावेश जो मैंने अपने कॉलेज में बिताये...आशा करता हूँ आपको अच्छी लगेगी ...
भाषा को सरल रखा है ताकि ज्यादा लोग इसे आसानी से समझ सकें ....|



ज़िन्दगी की बिसात पर.. वक़्त की शेह से  .. आज मुझे मात मिली ..
सोचा न था की ये पल .. ये साथ ..
वक़्त यूँ ही सिमट कर रह जाएगा कुछ घंटों के दरम्यान ...
चार साल बीत गए ...
सोचता हूँ की कुछ  लिखूं आज अपने दोस्तों के नाम ... 

गए चार सालों की तरफ जब नज़र फेरता हूँ तो
कई यादें .. कई बातें याद आती हैं ...
यादें जो खट्टी हैं ..यादें जो मीठी हैं ..

याद आता है पहले बार किस तरह सहमे हुए कदम रखा था यहाँ
इस डर से की कहीं मेरी Ragging न की जाएँ ...
आज भी याद है की किस तरह सहेम के हमनें बेल्ट और घडी पेहेनना छोर दिया था
उन् दिनों  seniors  के डर से  ..

वक़्त बढ़ता गया .. अंजानो के इस शेहेर में मुझे कई मेरी तरह दीवाने मिले ..
दोस्ती हुई तो पता चला की इस सफ़र में हम सभी एक ही कश्ती में सवार थे ..
कारवां बढ़ता गया ..
और इसका लुत्फ़ भी बढ़ता गया..
हर दिन को किसी जाम की तरह आखरी कतरे तक पीया..

ज़िन्दगी में कई उतार - चढ़ावों को देखा ...
कुछ खुद को बदला .. कुछ औरों को बदलते हुए देखा ...
कई मुकामों को हासिल किया .. कई पीछे छूट गए ...
इन दीवारों के बीच कई रातें .. कई शामें गुजार दी ...
आज न जाने क्यूँ इनसे दूर होने के ख़याल से आँखें भर गयी हैं ...
एक गहरा रिश्ता सा ह़ो गया है सबसे ..
शायद  आदत सी पड़ गयी है इन् दीवारों की …

वो शामों में किसी चाय की दूकान पे घंटों ठहाके लगाना ..
वो लॉन में बैठ के बेमतलब बातें की बातें करना ...
वो last bench पे बैठ कर क्लास करना ..
वो शरारतें ... वो किस्से ...
सब कुछ आँखों के सामने आज भी उतना ही  जीवंत है...

अब न तो मुझे किसी लड़की से बात करने पे कौन चिढायेगा ..
और न ही कोई मेरी टांग खिचेगा ..
अब मुझे मेरे Birthday  पे न तो कोई GPL देगा ..
और न ही कोई मेरे सड़े जोक्स पे हसेगा ...
हर बात पे  मुझसे party मांगने वाले को देखने को भी तरस जाऊंगा ...
अब मैं अपने juniors  को फ़ालतू के  lectures  भी न दे पाऊंगा ...

Graffiti और Edge सिर्फ शब्द बन के रह जायेंगे मेरे लिए ..
Edge Room की बातें सदा याद आयेंगे मुझे ...

जिस कॉलेज को कभी कम नंबर आने पे कोसा करते थे ...
आज उसी  कॉलेज में कुछ महीने और गुजारने को तरस गए हैं ....
वो first year  का uniform जो कभी मुझे मेरे  Gate keeper की याद दिलाता था ...
आज उसे पेहेन्ने को भी  तरस जाऊंगा ….


तस्वीरों में क़ैद कभी इन् पलों को याद कर यूँ ही हंस पडूंगा कभी ...
कुछ किस्सों को .. कुछ बातों को याद कर शायद मेरी आँखें भर आएँगी ..
सच .. ये सफ़र .. इसके राहियों को मैं कभी भूल न सकूंगा ..
याद आयेगा वो बारिश में भींगना ...
याद आएगी वो चिलचिलाती धुप में घूमना  .. ..
वो सेहर में साथ निकल पढ़ना यूँ ही किसी सफ़र पे  .. 



चार साल तो  सह लिए पर इन् कुछ पलों को सहने में खुद को कमज़ोर पाता हूँ ...
कई semesters , internals , lab submissions  और vivas के बाद
आज सोचता हूँ की जीवन में क्या खोया .. क्या पाया ..
ये रिश्ते ही तो  हैं जिन पर मुझे नाज़ होगा ... 
रेत की तरह वक़्त अपनी  हाथों से छूटते इन पलों को  चाह के भी न रोक पाऊँगा …
कागज़ भींग चुका है ... आज भावुक सा हूँ .. कुछ और न लिख सकूंगा..
इस campus को .. कुछ रिश्तों को ... कुछ अश्कों को साथ समेटे हुए अलविदा कह रहा हूँ आपको ..

Friday, January 27, 2012

Happy Republic Day to all...






From being a Dominion of the British till 1950 to a Developing Nation in 2012...India has surely come a long way in its tryst with destiny ..

There are loopholes in this development though .. Kashmir is still burning .. Corruption has reached its peak .. Politics still continues to be the dirty lust for power in the country that aspires to reach the pinnacle of the world .. and still more than half of the country lives under the poverty line ..

For Corruption, we all should take the blame collectively and should aim at eradicating it from the society by not being a part of it .. For Kashmir though i feel a bit appalled as an Indian that many lives are being lost after so many years and the fact that even the press is censured from showing the stark reality of the day-to-day situation of the Valley.. The fact that we have time and again choosed Governments who haven't shown any inclination to solve the issue over such a long period of time leaves me stunned sometimes ..

We didn't get our Freedom for free ... Lets make sure that we don't misuse it .. we don't take it for granted ...

Its quite easy to say that i am proud to be an Indian .. I guess the hard part lies in ensuring that our nation is such that the whole world is proud of ..

As a Republic , we not only enjoy certain freedoms but also certain duties ... Lets ensure that we fulfill all the duties as a responsible citizen ... and Lets hope that a day will come when no Indian would die due to any terrorist attack ..or due to hunger ..

Bose : The Forgotten Hero of Our Freedom Struggle



"I am not basically a politician. From the beginning I long for Divine Sadhana. By quirk of fate I am dragged in politics and getting submerged in it. I am getting far away from Divine Work. " - Netaji

The true son of the soil who lived and died for his motherland.. He got selected in the ICS and then resigned to be a part of the Freedom Movement. Today , we see Govt schemes named after the members of Gandhi family but seldom does anyone talks bout Netaji who remains till date the Forgotten hero of our Freedom Struggle .. Netaji founded the Indian National Army which at its peak had 85,000 soldiers to fight for India's freedom .

Narayan Murthy once said "Had Bose been there at the helm then India would have become the second largest Economy of the World . He never really got the due credit for his contribution to India's Freedom Struggle ..."



Bose worked as the CEO of the municipal corporation of Calcutta for Chittaranjan Das when the latter was elected mayor of Calcutta in 1924


Subhas chandra bose with Gandhi ji & Sardar vallabh bhai patel 
Netaji with Adolf Hitler


Netaji Inspecting the Azad Hind Fauj 

Bose used to say - "No real change in history has ever been achieved by discussions. Be the change you want to bring "

On his 115th Birthday , i can say only one thing .. I salute u sir..Wish u had lived a few more years ...

Sunday, January 1, 2012

एक बराह्मण ने कहा कि ये साल अच्छा है...


नया साल कई उम्मीदें और आशाएं अपने साथ लाता है ... नयी उमंगें .. नयी आशाएं और नए तरंगों को लेकर आता है .. कुछ ऐसी ही उमीदें बटोरे हुए ... ये गीत है जिसे 'सबीर  दत्त ' ने लिखा है ... कई मायिनें में ये साल देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होगा .. गए साल में हमने युवायों को देश की राजनीति में हिस्सा लेते हुए देखा है ... ये साल इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि इससे हमें ये पता चलेगा की ये चिंगारी क्या दो दिन की चांदनी थी या एक मशाल है जो प्रज्ज्वलित रहेगी ... आशा है इस वर्ष हम देश में काफी बदलावों का अनुभव करेंगे .. भारत आज जहां विश्व में उभरती हुयी एक शक्ति के रूप में मशहूर है तोह दूसरी ओर कई बुनियादी प्रश्नों के हल ढूँढने में विफल रहा है .. आने वाले इस साल में इतनी उम्मीद करता हूँ की फिर से हम उस भारत को देखें जिसकी कल्पना शायद हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी ... एक ऐसा भारत जो खुशहाल है ... एक ऐसा भारत जिसमें कोई भूख से नहीं मरेगा .. एक ऐसा भारत जिसमें भ्रष्टाचार नहीं होगा ... जहां जात पात का भेदभाव न होगा.... न धर्म और मज़हब के नाम पे लड़ाई होगी .. कुछ ऐसी ही आशाओं को बटोरे हुए .. सबीर दत्त की ये नज़्म को पेश कर रहा हूँ जिसे जगजीत जी ने अपनी स्वर दे कर अमर कर दिया ...

एक ब्राह्मण ने कहा कि ये साल अच्छा है

ज़ुल्म की रात बहुत जल्द टलेगी अब तो
आग चुल्हों में हर इक रोज़ जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर इक शख्स़ यहां सोएगा
आंधी नफ़रत की चलेगी न कहीं अब के बरस
प्यार की फ़सल उगाएगी जमीं अब के बरस
है यहीं अब न कोई शोर-शराबा होगा
ज़ुल्म होगा न कहीं ख़ून-ख़राबा होगा
ओस और धूप के सदमें न सहेगा कोई
अब मेरे देश में बेघर न रहेगा कोई

नए वादों का जो डाला है वो जाल अच्छा है
रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्छा है

दिल के ख़ुश रखने को गा़लिब ये ख़याल अच्छा है