Sunday, January 1, 2012

एक बराह्मण ने कहा कि ये साल अच्छा है...


नया साल कई उम्मीदें और आशाएं अपने साथ लाता है ... नयी उमंगें .. नयी आशाएं और नए तरंगों को लेकर आता है .. कुछ ऐसी ही उमीदें बटोरे हुए ... ये गीत है जिसे 'सबीर  दत्त ' ने लिखा है ... कई मायिनें में ये साल देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होगा .. गए साल में हमने युवायों को देश की राजनीति में हिस्सा लेते हुए देखा है ... ये साल इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि इससे हमें ये पता चलेगा की ये चिंगारी क्या दो दिन की चांदनी थी या एक मशाल है जो प्रज्ज्वलित रहेगी ... आशा है इस वर्ष हम देश में काफी बदलावों का अनुभव करेंगे .. भारत आज जहां विश्व में उभरती हुयी एक शक्ति के रूप में मशहूर है तोह दूसरी ओर कई बुनियादी प्रश्नों के हल ढूँढने में विफल रहा है .. आने वाले इस साल में इतनी उम्मीद करता हूँ की फिर से हम उस भारत को देखें जिसकी कल्पना शायद हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी ... एक ऐसा भारत जो खुशहाल है ... एक ऐसा भारत जिसमें कोई भूख से नहीं मरेगा .. एक ऐसा भारत जिसमें भ्रष्टाचार नहीं होगा ... जहां जात पात का भेदभाव न होगा.... न धर्म और मज़हब के नाम पे लड़ाई होगी .. कुछ ऐसी ही आशाओं को बटोरे हुए .. सबीर दत्त की ये नज़्म को पेश कर रहा हूँ जिसे जगजीत जी ने अपनी स्वर दे कर अमर कर दिया ...

एक ब्राह्मण ने कहा कि ये साल अच्छा है

ज़ुल्म की रात बहुत जल्द टलेगी अब तो
आग चुल्हों में हर इक रोज़ जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर इक शख्स़ यहां सोएगा
आंधी नफ़रत की चलेगी न कहीं अब के बरस
प्यार की फ़सल उगाएगी जमीं अब के बरस
है यहीं अब न कोई शोर-शराबा होगा
ज़ुल्म होगा न कहीं ख़ून-ख़राबा होगा
ओस और धूप के सदमें न सहेगा कोई
अब मेरे देश में बेघर न रहेगा कोई

नए वादों का जो डाला है वो जाल अच्छा है
रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्छा है

दिल के ख़ुश रखने को गा़लिब ये ख़याल अच्छा है

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