हर चीज़ पे अश्कों से
लिखा है तुम्हारा नाम
ये रस्ते घर गलियाँ
तुम्हें कर ना सके सलाम
हाय दिल में रह गई बात
जल्दी से छुड़ा कर हाथ
कहाँ तुम चले गए
अब यादों के कांटे
इस दिल में चुभते हैं
ना दर्द ठहरता है
ना आंसू रुकते हैं ...
कहाँ तुम चले गए ....
जगजीत जी की मृत्यु पे मैं खुद को व्यक्त भी नहीं कर पाया .. शायद उनकी मृत्यु का सदमा ऐसा लगा था की शब्द कम पड़ गए मेरे लिए ... सच कहूं तो आज भी कितने दिन ये विश्वास नहीं होता की जगजीत जी अब हमारे बीच नहीं रहे ...
जगजीत सिंह जी कई मायनों में सिर्फ एक गायक ही नहीं एक प्रेरक भी रहे मेरे लिए ... कई मायनों में उनके संगीत, उनके गीतों ने मुझे जीवन के कई ऐसे पहलू दिखाए जिनसे मैं अनभिग्य था .. ऐसी कई भावनाएं हैं जिन्हें आज भी मैं उनके गीतों के आयेने से देखता हूँ ... जिन्हें शायद उनके गीतों में पहली बार महसूस किया... उनके गीतों को मैं तब भी सुनता था जब उनके अलफ़ाज़ मेरे समझ से कोसों दूर थे .. शायद कहीं न कहीं मैं परिपख्व हो रहा था उनकी ग़ज़लों को सुन कर ..जगजीत जी की सबसे पुरानी याद कुछ बारह-तेरह साल पुरानी है.. जगजीत जी को पहली बार दूरदर्शन पे चित्रहार में पहले बार राज बब्बर को " होंटों से छु लो तुम " गाते हुए सूना .. सछ कहूं तोह ये एक ऐसा गीत है जिसकी पूजा मैं आज भी करता हूँ ... और हाँ कयी मायनों में प्रेम की परिभाषा इस गीत से शुरू होती है मेरे लिए और सदा रहेगी... उसके बाद सरफ़रोश और तुम बिंन के गीत सुन कर मैं जगजीत जी की आवाज़ में अपने साजों को पाने लगा ... ऐसा शायद जीवन में पहले बार लगा की कोई ऐसी आवाज़ रखता है की जिसमें दर्द भी एक मिठास की तरह प्रतीत होता है और प्रेम एक भक्ति की तरह दिखता है... कुछ वर्षों में जगजीत जी की कई ग़ज़लों को सूना .. मिर्ज़ा ग़ालिब और मीर के कलामों से मुखातिब मुझे जगजीत जी की ग़ज़लों ने ही कराया .. गुलज़ार की शायरी शायद आज भी सबसे खूबसूरत जगजीत जी के ही आवाज़ में लगती है ... "सजदा " एल्बम में जगजीत जी , लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ ग़ज़लें पेश जिसकी वजह से ग़ज़लों मेरा रिश्ता और गहरा हो गया ... घर में जब म्यूजिक सिस्टम आया तो सबसे पहले जगजीत जी के ही गीतों को सुना ... चित्रा जी के साथ गाये हुए उनके ग़ज़लों की जी जितनी भी तारीफ़ की जाए .. कम है ... उनके पुत्र विवेक की मृत्यु के बाद चित्रा जी ने ग़ज़ल गायकी को अलविदा कह दिया जिससे ग़ज़ल के महफ़िल अधूरी हो गयी ... जगजीत जी ने फिर भी शमा को जलाए रखा और हमें एक से एक नगमे दिए ...
न जाने क्यूँ खुद को सदा इन् ग़ज़लों के करीब पाया .. कभी कागज़ की कश्ती को तय्राते हुए देखा तो कभी ख़त के पुर्जों को उड़ाते हुए देखा ... जगजीत जी मुझे पे अपनी अमिट छाप चोर चुके थे ...
"महखाने की बात न कर वाइज़ मुझसे ...
आना जाना .. मेरा भी है ... तेरा भी ..
ग़म खजाना तेरा भी है .. मेरा भी .. "
मिर्ज़ा ग़ालिब की नज्में को जगजीत जी मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल के लिए गाया ...
" हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले ..
बहुत निकले मेरे अरमान .. लेकिन .फिर भी कम निकले .."
"एक ब्रह्मण ने कहा है की ये साल अच्छा है ..
भूख के मरे कोई बच्चा नहीं रोयेगा ,
चैन की नींद हर एक शख्स यहाँ सोयेगा ...
आंधी नफरत की चलेगी न कहीं - अब के बरस
प्यार की फसल उगाएगी ज़मीन अब के बरस .... "
गुलजार के नज्में को भी उन्होंने अपनी मौसीकी में ढाला ...
"शाम से आँख में नमीं सी है ... शायद फिर आपकी कमी सी है ..."
मुझे आज भी अच्छी तरह याद की किस तरह इस ग़ज़ल को पहली बार ही सुन्न कर आँखें भर आयीं थी मेरी ... जगजीत जी ने ग़ज़लों को एक नया मुकाम दिया ... उससे महफ़िल और बैठकों से उठा कर हमारे दिल ... हमारे ज़हन में उतारा ... जगजीत जी ने न सिर्फ ग़ज़ल गायकी में कई नए प्रयोग किये बल्कि ग़ज़लों के संगीत को भी एक नए रूप में उसके नुमायिन्दों के लिए पेश किया ...
जगजीत जी की मृत्यु पे काफी खोया हुआ महसूस किया खुद को .. सछ कहूं तो आँखों से अश्क कुछ यूँ ही निकल पड़े ... ऐसा लगा की किसी साथी को खो दिया .. कोई हमसफ़र चला गया .. जिससे मेरी तरह भीड़ में भी तन्हाई का एहसास होता था ... बछ्पन के बिछुड़ जाने का अफ़सोस होता था ... जिसने अपने सपनों को काफी करीब से टूटते हुए देखा था ... सच कहूं तो अब एहसास होता है की जगजीत जी हमें कभी छोर के नहीं जा सकते ... उनके गीत .. उनका संगीत हमारे साथ सदा था और रहेगा..
पहले भी जब किसी को खुद के करीब नहीं पाता था तो उनकी ग़ज़लों को सुनता था और आज भी कयी शामें उनकी नज्मों के साथ गुजार देता हूँ... मेरा और उनका रिश्ता न कभी बदला है .. न कभी बदलेगा ...
Very well penned. Nice tribute to the departed soul
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