Thursday, November 10, 2011

खामोश अल्फाजों को लिखता हूँ वक़्त की रेत पर..






खामोश अल्फाजों को लिखता हूँ वक़्त की रेत पर .... 
उमंगों की कलम है और अरमानो की स्याह 
ये सोच कर की कुछ निशाँ छोर जाऊँगा उस पर ... 
हसरत रखता हूँ कभी किसी की आँखों .. 
किसी की मुस्कराहट में कभी नज़र आऊँगा ...


जीवन है एक लंबा सफ़र ... कल भी अकेले चला था ...
आज भी अकेला चलता हूँ इस राह पर ...
मुसाफिर मिलते हैं ... बिछुड़ जाते हैं ...
कुछ नए रिश्ते बनते हैं और कुछ यादों को जन्म देते हैं ... 

लफ़्ज़ों में कभी खुद को बयाँ न कर सका ...
आज भी मुश्किल होती है ख्यालों को शब्द अख्तियार करने में ..
कश्ती में सवार .. खोजता हूँ अपनी मंजिल ...
जानता हूँ थोडा खोया खोया सा रहता हूँ हर पल ...
शायद खुली आँखों से कुछ सपने बुनते रहता हूँ अक्सर ... 
शायर हूँ ... कुछ लिखता हूँ शायद खुद को बहलाने को ..
शायद खुद की ही बातें .. खुद ही को सुनाने की कोशिश करता हूँ 


आज भी कभी रातों में टेहेलता हूँ सोचते हुए जीवन के मायने 
इस सोच में डूबा रहता हूँ की आखिर कब उस साहिल को ढून्ढ सकूंगा 
की जिस पर पहुँच के थोड़ा सुकून पा सकूंगा खुद के लिए ..

आज भी कुछ पर्दों के जानिब से झाकने की कोशिश करता हूँ इसके अर्थ को ..
कुछ किताबों से पूछता हूँ ...
कुछ सलवटों और कुछ लफ़्ज़ों में झांक कर ढूंढता हूँ उसे ..
शायद उन् ही खामोश अल्फाजों की तलाश में रहता हूँ ...
उनके मायने ढूँढता हूँ ..


बिखरा बिखरा सा ... खोया खोया सा ..
कभी-कभी लिख कर शायद बयाँ करता हूँ उसे ..
कुछ शामें और सेहर यूँ ही इस सोच में गुजार देता हूँ मैं ...
खामोश अल्फाजों को लिखता हूँ वक़्त की रेत पर ..
उमंगों की कलम है और अरमानो की स्याह
ये सोच कर की कुछ निशाँ छोर जाऊँगा उस पर ... |

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