Thursday, November 10, 2011

यादें







आज इस बारिश के मौसम में भी 
कुछ पत्ते सूखे से लगते हैं 
कुछ रास्ते अनजान से दीखते हैं 
कुछ लोग अजनबी से हुए मालूम पड़ते हैं ...
कुछ यादें धुंधली स़ी लगती हैं ...
और कुछ नज़्म फिर से सुनने को जी चाह रहा है ..

मन की विवशता को किन शब्दों में व्यक्त करूँ
ये समझ नहीं आता..
सूना था कहीं की जीवन एक लम्बा सफ़र है 
पढ़ा था कहीं की
मौत और वियोग विद्धि के विधान है

फिर भी न जाने क्यूँ....
आज इस सफ़र के कुछ राहियों से बिच्द्दने का शोक मना रहा हूँ...
इस पीड़ा को सहने में खुद को अक्षम महसूस कर रहा हूँ ...
जीवन के ऐसे एक मोड़ पर खुद को खडा पाता हूँ ...
जहां काफी कुछ छूट रहा सा प्रतीत हो रहा है ..
शायद वक़्त मुझसे तेज चल रहा है ...
या शायद मैं थम सा गया हूँ ........



[This poem is dedicated to all the seniors whom i'll miss deeply .... ]

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